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नज़्म
देखिए देते हैं किस किस को सदा मेरे बाद
'कौन होता है हरीफ़-ए-मय-ए-मर्द-अफ़गन-ए-इश्क़'
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
औज-ए-अफ़्लाक पे है माँग की अफ़्शाँ की दमक
शीशा-ए-मह से छलक कर मय-ए-तुंद-ओ-बे-दर्द
मुख़्तार सिद्दीक़ी
नज़्म
ग़रज़ इस हसरत-ओ-अंदोह-ओ-यास-ओ-ग़म की बस्ती में
कहीं दौर-आफ़रीं होता, कहीं दर्द-आश्ना होता
जमील मज़हरी
नज़्म
कौन होता है हरीफ़-ए-मय-ए-मर्द-अफ़्गन-ए-इल्म
किस के सर जाएगा अब बार-ए-गिरान-ए-उर्दू
मसऊद हुसैन ख़ां
नज़्म
आ, और बिगुल का नग़्मा-ए-''जाँ-आफ़रीं'' भी सुन
आ, बे-कसों का नाला-ए-अंदोह-गीं भी सुन
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
सर ले के हथेली पर उभरी थी जो दुनिया में
उस क़ौम को ले डूबा शुग़्ल-ए-मै-ओ-मय-ख़ाना