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नज़्म
चले हैं बहर-ए-मय-कशी शुयूख़ भी रवाँ-दवाँ
ज़बान-ए-बर्ग-ए-गुल पे है ये नारा-ए-तरब-निशाँ
अर्श मलसियानी
नज़्म
बादल घिरे हुए हैं रक़्साँ हैं बिजलियाँ भी
छिड़ जाएँ साज़-ए-इशरत हों दौर मय-कशी के