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नज़्म
ये शेर-ए-हाफ़िज़-ए-शीराज़, ऐ सबा! कहना
मिले जो तुझ से कहीं वो हबीब-ए-अम्बर-दस्त
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
तुर्क-ए-शीराज़ हो तुम हाफ़िज़-ए-शीराज़ हूँ मैं
अब समरक़ंद-ओ-बुख़ारा है तुम्हारी ख़ातिर
अंजुम आज़मी
नज़्म
तुर्क-ए-शीराज़ हो तुम हाफ़िज़-ए-शीराज़ हूँ मैं
अब समरक़ंद-ओ-बुख़ारा है तुम्हारी ख़ातिर
अंजुम आज़मी
नज़्म
शीराज़ के मज्ज़ूब-ए-तुनक-जाम के अफ़्कार के नीचे
तहज़ीब-ए-निगूँ-सार के आलाम के अम्बार के नीचे
नून मीम राशिद
नज़्म
शाहिद-ए-मज़्मूँ तसद्दुक़ है तिरे अंदाज़ पर
ख़ंदा-ज़न है ग़ुंचा-ए-दिल्ली गुल-ए-शीराज़ पर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
पुराने मा'बदों के ताक़चों में गर्द उड़ती है
गुलिस्ताँ बोस्ताँ व बुलबुल-ए-शीराज़ भी याँ अजनबी ठहरे
कौसर महमूद
नज़्म
मय-कदा था तेरा यकसर सोज़ मुतलक़ साज़ भी
थी मय-ए-हिन्दी भी साग़र में मय-ए-शीराज़ भी
मोहम्मद सादिक़ ज़िया
नज़्म
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
फ़रंगी शराबें तो अन्क़ा थीं
लेकिन मय-ए-नाब-ए-क़ज़वीन ओ ख़ुल्लार-ए-शीराज़ के दौर-ए-पैहम से
नून मीम राशिद
नज़्म
रश्क-ए-शीराज़-कुहन हिन्दोस्ताँ की आबरू
सर-ज़मीन-ए-हुस्न-ओ-मौसीक़ी बहिश्त-ए-रंग-ओ-बू
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
लिया है कितने बहिश्तों से इंतिक़ाम न पूछ
गुलों के दाम ख़रीदे हैं कितने बर्क़-ओ-शरार