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नज़्म
मुंतज़िर बारिश के हैं मक्की के और शाली के खेत
तिश्नगी से ख़ोशा की सूरत है मुरझाई हुई
शाह दीन हुमायूँ
नज़्म
मुझे भी लोग कहते हैं कि ये जल्वे पराए हैं
मिरे हमराह भी रुस्वाइयाँ हैं मेरे माज़ी की
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ग़ाफ़िल आदाब से सुक्कान-ए-ज़मीं कैसे हैं
शोख़ ओ गुस्ताख़ ये पस्ती के मकीं कैसे हैं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
गुल करो शमएँ बढ़ा दो मय ओ मीना ओ अयाग़
अपने बे-ख़्वाब किवाड़ों को मुक़फ़्फ़ल कर लो
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
रात हँस हँस कर ये कहती है कि मय-ख़ाने में चल
फिर किसी शहनाज़-ए-लाला-रुख़ के काशाने में चल
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
तहमतन यानी 'रुस्तम' था गिरामी 'साम' का वारिस
गिरामी 'साम' था सुल्ब-ए-नर-ए-'मानी' का ख़ुश-ज़ादा
जौन एलिया
नज़्म
मकाँ फ़ानी मकीं फ़ानी अज़ल तेरा अबद तेरा
ख़ुदा का आख़िरी पैग़ाम है तू जावेदाँ तू है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अपने माज़ी के तसव्वुर से हिरासाँ हूँ मैं
अपने गुज़रे हुए अय्याम से नफ़रत है मुझे