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नज़्म
जबीं की छूट पड़ती है फ़लक के माह-पारों पर
ज़िया फैली हुई है सारा आलम जगमगाता है
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
तेरी नब्ज़ों में मज़दूर ओ मल्लाह का ख़ून है
तेरी आग़ोश में कार-ख़ानों की दुनिया बसी है
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
कश्ती भी नई दरिया भी नया साहिल भी नया मल्लाह भी नए
अब कर के भरोसा हिम्मत पर तूफ़ान में राह बना डालें
कँवल डिबाइवी
नज़्म
यहाँ पानी के धारे पर चराग़-ए-ज़ीस्त जलते हैं
यहाँ मौजों की गोदी में कई मल्लाह पलते हैं
मयकश अकबराबादी
नज़्म
इधर उस दूसरे साहिल से जो मल्लाह आया है
ज़मीनें बेचती बस्ती से क्या पैग़ाम लाया है
अख़्तर हुसैन जाफ़री
नज़्म
हसन अल्वी
नज़्म
ये गाते ज़लज़ले ये नाचते तूफ़ान के धारे
हवा की निय्यतों से बे-ख़बर मल्लाह बेचारे