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नज़्म
मस्जिदों में मौलवी ख़ुत्बे सुनाते ही रहे
मंदिरों में बरहमन अश्लोक गाते ही रहे
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
तुम्हें सुनता हूँ
तो मुझ को क़दीमी मंदिरों से घंटियों और मस्जिदों से विर्द की आवाज़ आती है
रहमान फ़ारिस
नज़्म
तुझे मंदिरों ने सदाएँ दीं कि तिरे करम से अमाँ मिली
तुझे मस्जिदों ने दुआएँ दीं कि तबाहियों से बचा दिया
इक़बाल सुहैल
नज़्म
फिर अब की बार ज़ाएअ' हो न जाए सर्दियों की धूप
ये सुब्ह-ओ-शाम पूजा अर्चना ये मंदिरों की धूप
पुष्पराज यादव
नज़्म
कि कलीसाओं और मंदिरों का निज़ाम कौन से ख़ुदा के पास है
जो अम्न की फ़ाख़्ताओं को