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नज़्म
ये ज़मीं थीं ज़िल्लत-ए-आफ़ाक़ जिस की पस्तियाँ
रिफ़अ'तों में रू-कश-ए-हफ़्त-आसमाँ होने को है
फ़ज़लुर्रहमान
नज़्म
इस चमन की सरज़मीं है रू-कश-ए-हफ़्त-आसमाँ
इस चमन में ताइर-ए-अर्श-आशियाँ पैदा हुआ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
दिमाग़ बर-सर-ए-हफ़्त-आसमाँ था देहली का
ख़िताब-ए-ख़ित्ता-ए-हिन्दोस्ताँ था देहली का
मोहम्मद अली तिशना
नज़्म
आसमाँ की गोद में दम तोड़ता है तिफ़्ल-ए-अब्र
जम रहा है अब्र के होंटों पे ख़ूँ-आलूद कफ़
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
आसमाँ के पाँव पर महताब ओ अंजुम के सुजूद
और ज़मीं की रौनक़ों का वहम फ़िक्र-ए-रफ़्त-ओ-बूद
शहज़ाद अहमद
नज़्म
ज़िंदगी के जितने दरवाज़े हैं मुझ पे बंद हैं
देखना हद्द-ए-नज़र से आगे बढ़ कर देखना भी जुर्म है
अहमद नदीम क़ासमी
नज़्म
बहार-ए-हुस्न का तू ग़ुंचा-ए-शादाब है सलमा
तुझे फ़ितरत ने अपने दस्त-ए-रंगीं से सँवारा है
नय्यर वास्ती
नज़्म
तड़प रहे हैं जो तूफ़ाँ मिरे ख़यालों में
वो बंद-ए-ज़ब्त-ओ-तहम्मुल से आ न टकराएँ