aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "mantarii"
वो संतरी हो कोई कि हो कोई मंत्रीहोता है हावी सब पे ही एहसास-ए-कमतरी
रेस के घोड़े, सरकार के मंत्रीसिनेमा, लड़कियाँ, ऐक्टर, मस्ख़रे
ज़मीनअज़ीमुश्शान जुस्सा है हमारी मंत्री तुम हो
लोग कह रहे हैं बड़े मंत्री आने वाले हैंचर्चा ये भी है कि बड़े दीन-दयालू हैं
फ़सील-ए-शहर के हर बुर्ज हर मनारे परकमाँ-ब-दस्त सितादा हैं अस्करी उस के
गया दौर-ए-सरमाया-दारी गयातमाशा दिखा कर मदारी गया
बस एक मन्ज़र-ए-बे-हिज्र-ओ-विसाल है जिस मेंहम अपने आप ही कुछ रंग भरते जाते हैं
हर सुब्ह उठ के गाएँ मंतर वो मीठे मीठेसारे पुजारियों को मय पीत की पिला दें
हर मंज़र-ए-जमाल दिखाती चली गईजैसे उन्हीं को सामने लाती चली गई
जिस को लिखते हैं दीवानीऔर मस्तानी
शिकस्त कर केन जाने अब किस की रहगुज़र का मनारा-ए-रौशनी हुए हैं
बुतून-ए-ग़ैब से मेरे शुऊर-ए-असग़र कोहर एक मंज़र-ए-मानूस घर का हर गोशा
फिर अपनी मन-मानी करेजिस दिन मुझे मौत आए
लोग इस मंज़र-ए-जांकाह को जब देखेंगेऔर बढ़ जाएगा कुछ सतवत-ए-शाही का जलाल
खेती तिरी हर इक हरीदिलकश तिरी ख़ुश-मंज़री
वो चालीस रातों से सोया न थावो ख़्वाबों को ऊँटों पे लादे हुए
सुना है ख़ाक से तेरी नुमूद है लेकिनतिरी सरिश्त में है कौकबी ओ महताबी!
हड्डियाँ मेरी चटख़ने लगीं ईंधन की तरहमंतर होंटों से टपकने लगे रोग़न की तरह
एक अनार का पेड़ बाग़ में और घटा मतवारी थीआस-पास काले पर्बत की चुप की दहशत तारी थी
ये अँधेरी रात ये सारी फ़ज़ा सोई हुईपत्ती पत्ती मंज़र-ए-ख़ामोश में खोई हुई
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