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नज़्म
किस तरफ़ जाऊँ कहाँ धोऊँ मैं अपना दामन
मेरे मक़्तूल मिरे साथ हैं बे-ग़ुस्ल-ओ-कफ़्न
वामिक़ जौनपुरी
नज़्म
रात जो मक़्तूलों के ख़ून को सियाह और सर्द कर देती है
और क़ातिलों को पनाह देती है