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नज़्म
ऐ मर्द-ए-ख़ुदा तुझ को वो क़ुव्वत नहीं हासिल
जा बैठ किसी ग़ार में अल्लाह को कर याद
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वो इमाम-उल-हिंद वो मर्द-ए-ख़ुदा रुख़्सत हुआ
जंग-ए-आज़ादी का अपनी पेशवा रुख़्सत हुआ
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
पहले ही बचना था 'नख़शब' उस बुत-ए-बे-मेहर से
अब भला मर्द-ए-ख़ुदा होता है पछताने से क्या
नख़्शब जार्चवि
नज़्म
इक रिंद-ए-पारसा था इक मर्द-ए-बा-ख़ुदा था
महफ़िल में दोस्ती की इक यार-ए-बा-वफ़ा था
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
नज़्म
मर्द-ए-ताजिर को ख़ुदा की ज़ात पर है ए'तिमाद
मर्द-ए-चाकर हर घड़ी अग़्यार का मुहताज है
फ़ैज़ लुधियानवी
नज़्म
न हो नौमीद नौमीदी ज़वाल-ए-इल्म-ओ-इरफ़ाँ है
उमीद-ए-मर्द-ए-मोमिन है ख़ुदा के राज़-दानों में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हक़ तो ये है कि ख़ुशामद से ख़ुदा राज़ी है
मर्द ओ ज़न तिफ़्ल ओ जवाँ ख़ुर्द ओ कलाँ पीर ओ फ़क़ीर
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
पी के इस सहबा को होतीं मोटरें मस्त-ए-ख़िराम
मैं तो हूँ मर्द-ए-मुसलमाँ मुझ पे पीना है हराम
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
सेहर-ए-मौसीक़ी हुआ फिर गूँज उठे गोकुल के बन
रक़्स फ़रमाने लगी फिर वादी-ए-गंग-ओ-जमन
अर्श मलसियानी
नज़्म
अब बता चश्म-ए-फुसूँ-कार कहाँ से लाऊँ
मस्त-ओ-बे-ख़ुद सी वो रफ़्तार कहाँ से लाऊँ