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नज़्म
औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
जब जी चाहा मसला कुचला जब जी चाहा धुत्कार दिया
साहिर लुधियानवी
नज़्म
यक़ीं मोहकम अमल पैहम मोहब्बत फ़ातेह-ए-आलम
जिहाद-ए-ज़िंदगानी में हैं ये मर्दों की शमशीरें
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
रहमान फ़ारिस
नज़्म
सालहा बे-दस्त-ओ-पा हो कर बुने हैं तार-हा-ए-सीम-ओ-ज़र
उन के मर्दों के लिए भी आज इक संगीन जाल
नून मीम राशिद
नज़्म
जो इल्म मर्दों के लिए समझा गया आब-ए-हयात
ठहरा तुम्हारे हक़ में वो ज़हर-ए-हलाहिल सर-बसर
अल्ताफ़ हुसैन हाली
नज़्म
जवाँ मर्दों ही का है काम क़त्अ-ए-राह-ए-हुर्रियत
कि इस मंज़िल में बुज़दिल को क़दम धरना नहीं आता
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
नौकर और नमक और मज़हब... इन तावीलों से बाज़ आओ
मर्दों की ऐसी नेकी पर आ जाता है मुझ को ताव
शाद आरफ़ी
नज़्म
फिर ज़रूरत है जवाँ मर्दों की ऐ मादर-ए-हिन्द
राणा-प्रताप से ख़ुद्दार बशर पैदा कर