आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "markaz"
नज़्म के संबंधित परिणाम "markaz"
नज़्म
देखो हम ने कैसे बसर की इस आबाद ख़राबे में
शहर-ए-तमन्ना के मरकज़ में लगा हुआ है मेला सा
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
तमाम रानाइयों के मज़हर, तमाम रंगीनियों के मंज़र
सँभल सँभल कर सिमट सिमट कर सब एक मरकज़ पर आ रहे हैं
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
जहाँ पहला क़दम रक्खा था रोज़-ए-अव्वलीं हम ने
नहीं सरके इस अपने असली मरकज़ से ब-क़द्र-ए-मू
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
रहीन-ए-गर्दिश भी मरकज़-ए-काएनात भी हूँ
जो मैं ने देखा है वो मिरे ख़ूँ में रच गया है
ज़िया जालंधरी
नज़्म
मैं हमा-शौक़-ओ-मोहब्बत वो हमा-लुत्फ़-ओ-करम
मरकज़-ए-मर्हमत-ए-महफ़िल-ए-ख़ूबाँ हूँ मैं