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नज़्म
न जाने मैं जी रहा हूँ
या अपने ही तराशे हुए नए रास्तों की तन्हाइयों में हर लहज़ा मर रहा हूँ
अहमद नदीम क़ासमी
नज़्म
छीन लो इस से भैंसें मेरी और मुँह पर मारो चाँटा
देखो देखो सूख के मेरी भैंसें हुई है काँटा
क़तील शिफ़ाई
नज़्म
मारो न हमें डैडी बचपन का ज़माना है
मौसम है ये हँसने का हँस हँस के बिताना है
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
बहुत है घूमने का शौक़ तुम को ऐ बड़े भय्या
न मारो तो बता दूँ है तुम्हारा क़ाफ़िया पहिया