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नज़्म
फीका है जिस के सामने अक्स-ए-जमाल-ए-यार
अज़्म-ए-जवाँ को मैं ने वो ग़ाज़ा अता किया
आल-ए-अहमद सुरूर
नज़्म
ज़िंदगी के हुस्न का पैग़ाम था पैग़ाम-ए-शौक़
दीदा-ए-हैराँ में रक़्साँ थी मोहब्बत की बहार
सिद्दीक़ कलीम
नज़्म
उस की आवाज़ पैग़ाम-ए-सुब्ह-ए-मसर्रत भी थी
उस की आवाज़ इक दर्द-ए-शाम-ए-ग़रीबाँ भी थी
अब्दुल वहाब सुख़न
नज़्म
आँखों आँखों में दिया पैग़ाम-ए-इश्क़-ओ-बे-ख़ुदी
ज़िंदगानी इक शराब-ए-तुंद बन कर रह गई