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नज़्म
बहुत ही मसख़रा है वो
चलो जाने भी दो कि आइना इंसान की फ़ितरत में शायद ढल गया होगा
ख़ालिद मुबश्शिर
नज़्म
ख़ुदा के होंटों को ज़ख़्मी नहीं कर सकते
ज़मीन को उँगलियों पे घुमाने वाला मसख़रा
मुद्दस्सिर अब्बास
नज़्म
वो अपनी नफ़्इ से इसबात तक माशर के पहुँचा है
कि ख़ून-ए-रायगाँ के अम्र में पड़ना नहीं हम को
जौन एलिया
नज़्म
न सहबा हूँ न साक़ी हूँ न मस्ती हूँ न पैमाना
मैं इस मय-ख़ाना-ए-हस्ती में हर शय की हक़ीक़त हूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
बूँद भर दे न सका कोई मोहब्बत की शराब
यूँ तो मय-ख़ाने का मय-ख़ाना लुटा देखा है