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नज़्म
बिर्ज लाल रअना
नज़्म
पी न जाना बादा-ए-इशरत का जाम-ए-ख़ुश-गवार
है बहुत तकलीफ़-दह आ'ज़ा-शिकन इस का ख़ुमार
ज़फ़र अहमद सिद्दीक़ी
नज़्म
रक़्स में पैमाना है ख़ाली नहीं हैं जाम अभी
दिल है सरमस्त-ए-ख़ुमार-ए-बादा-ए-गुलफ़ाम अभी
अली मीनाई
नज़्म
मस्ती-ए-बादा-ए-किरदार से महरूम है 'अक़्ल
'इश्क़ का नश्शा-ए-गुफ़्तार सुराग़-ए-जिबरील
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
शराब-ए-नौ की मस्तियाँ, कि अल-हफ़ीज़-ओ-अल-अमाँ
मगर वो इक लतीफ़ सा सुरूर-ए-बादा-ए-कुहन
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
यही मिरी ख़्वाब-गाह-ए-इशरत यही है मेरा निगार-ख़ाना
धुएँ की रंगीन बदलियों में पका रही है जहाँ वो खाना
क़ाज़ी गुलाम मोहम्मद
नज़्म
बादा-ए-हुब्ब-ए-वतन के जाम भर भर कर पिला
तिश्नगी प्यासों की यूँ साक़ी बुझानी चाहिए
बाबू मुर्ली धर
नज़्म
राम और कृष्ण के जीवन से तुझे प्यार मगर
बादा-ए-हुब्ब-ए-मोहम्मद से भी सरशार मगर