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नज़्म
मता-ए-सोज़-ओ-साज़-ए-ज़िंदगी पैमाना ओ बरबत
मैं ख़ुद को इन खिलौनों से भी अब बहला नहीं सकता
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
जनाब-ए-'फ़ैज़' मताअ'-ए-हयात-ओ-हर्फ़-ओ-हुनर
ज़बाँ पे बारे ख़ुदाया ये किस का नाम आया
मुस्लिम शमीम
नज़्म
हम पे मुश्तरका हैं एहसान ग़म-ए-उल्फ़त के
इतने एहसान कि गिनवाऊँ तो गिनवा न सकूँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मता-ए-दिल मता-ए-जाँ तो फिर तुम कम ही याद आओ
बहुत कुछ बह गया है सैल-ए-माह-ओ-साल में अब तक
जौन एलिया
नज़्म
मताअ'-ए-दस्त-ए-सबा हो कि नक़्श-ए-फ़र्यादी
हर एक ज़ख़्म में दर्द-ए-अवाम की ख़ुशबू
मसूद मैकश मुरादाबादी
नज़्म
रहे न मुसहफ़-ए-हस्ती कुदूरतों से ग़लीज़
मताअ'-ए-फ़े'ल-ओ-सुख़न लग़्ज़िशों से पाक रहे