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नज़्म
मतला-ए-अव्वल फ़लक जिस का हो वो दीवाँ है तू
सू-ए-ख़ल्वत-गाह-ए-दिल दामन-कश-ए-इंसाँ है तू
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मैं ये कहती हूँ चुका दीजे जो पिछ्ला क़र्ज़ है
आप अपनी धुन में कहते हैं कि मतला अर्ज़ है
नश्तर अमरोहवी
नज़्म
शो'ला-ए-बेबाक भी है मतला-ए-अनवार भी
शम्अ की फ़ितरत में ग़ाफ़िल नूर भी है नार भी
ज़फ़र अहमद सिद्दीक़ी
नज़्म
सुब्ह के रंगीं लबों पर है तबस्सुम की झलक
गुल मताअ'-ए-ज़र निछावर करते हैं कलियाँ महक