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नज़्म
गए गुलशन पे ग़ैरों के तो मौज-ए-रंग-ओ-बू बन कर
हर इक गुलशन से हम को भी निदा-ए-ख़ुश-गवार आई
जयकृष्ण चौधरी हबीब
नज़्म
ये पहले डर था हम को झाँक कर देखे न हम-साया
ब-जुज़ ख़ौफ़-ए-ख़ुदा दिन में ब-ज़ाहिर कुछ न था खाया
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
मिस्ल-ए-नैरंग-ए-शफ़क़ हम ने बदलते देखे
इश्क़-ओ-उम्मीद है क्या हुस्न समझते हो किसे