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नज़्म
मग़्फ़िरत की तुझ पे मौला अब फ़रावानी करे
जन्नत-उल-फ़िरदौस में भी रहमत अर्ज़ानी करे
शहनाज़ परवीन शाज़ी
नज़्म
वो मेरे मौला की ख़ुशबुओं में रचा-बसा था
वो उन के दामान-ए-आतिफ़त में पला बढ़ा था
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
ईस्तादा सर्व के साए में थे मौला-ए-रूम
जिन के फ़र्मूदात में मुज़्मर हैं आयात-ए-मुबीं
शोरिश काश्मीरी
नज़्म
ज़िक्र-ए-मौला से लबों पर अब वो नर्मी ही नहीं
भाप सीने से उठे क्या दिल में गर्मी ही नहीं
जोश मलीहाबादी
नज़्म
'अनवर' की दुआ है ऐ मौला फिर हिन्द की क़िस्मत जाग उठे
बिछड़े आपस में मिल जाएँ हम रूठे हुए को मना डालें
कँवल डिबाइवी
नज़्म
मेरे मौला तेरा बंदा तिरे इकराम के लाएक़ नहीं लेकिन
मेरा बचपन तिरे इनआ'म का शाएक़ है अभी तक
ख़ालिद अहमद
नज़्म
जो मौला-बख़्श से वो पीटते हैं मुझ को मकतब में
कोई समझाए उन को वक़्त भी बर्बाद होता है
मुश्ताक़ अहमद नूरी
नज़्म
चाँटे न जमाए जाएँगे डंडों से न पीटा जाएगा
उस्ताद के मौला-बख़्श जहाँ दिखला न सकेंगे कुछ कर्तब