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नज़्म
मज़हब-ए-इंसानियत का पासबाँ कोई न था
कारवाँ लाखों थे मीर-ए-कारवाँ कोई न था
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
नज़्म
ज़मीर-ए-फ़ितरत-ए-इंसानियत को चौंका कर
उरूज-ए-क़िस्मत-ए-आदम दिखाएँगे हम लोग
अज़मत अब्दुल क़य्यूम ख़ाँ
नज़्म
निशान-ए-अज़्मत-ए-इंसानियत का नाम है शाइ'र
सरापा लुत्फ़-ओ-अज़्म-ओ-होश का पैग़ाम है शाइ'र
कमाल हैदराबादी
नज़्म
मज़हब-ए-तीरा-बख़्ती की तौहीन है
अपनी धरती के गले से अपने लिए कोई हिस्सा तलब करना इल्हाद है
आतिफ़ तौक़ीर
नज़्म
अपने मुस्तक़बिल से ताग़ूती तमद्दुन को है यास
दीदनी है दुश्मन-ए-इंसानियत का इज़्तिराब