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नज़्म
अख़्तर शीरानी
नज़्म
मिरी मज़लूम उर्दू तेरी साँसों में घुटन क्यूँ है
तेरा लहजा महकता है तो लफ़्ज़ों में थकन क्यूँ है
मंज़र भोपाली
नज़्म
बे-ज़ुल्म-ओ-ख़ता जिस ज़ालिम ने मज़लूम ज़बह कर डाला है
उस ज़ालिम के भी लोहू का फिर बहता नद्दी-नाला है
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
सुरूर बाराबंकवी
नज़्म
इस कमरे की दहलीज़ पर सर रख कर रोता है कोई
ये छुप छुप कर रोने वाला अपनी ही तरह महरूम न हो
साक़ी फ़ारुक़ी
नज़्म
ये दुआएँ हैं वो मज़लूम की आहों का धुआँ
माइल-ए-जंग नज़र आता है हर मर्द-ए-जवाँ