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नज़्म
मैं तिरे शहर में फिरता ही रहा सरगर्दां
शाह-राहों के हर इक मोड़ पे हैराँ हैराँ
मुसव्विर सब्ज़वारी
नज़्म
शोरिश-ए-बातिल शोर-ए-सलासिल कल भी था और आज भी है
मर्द-ए-मुजाहिद मद्द-ए-मुक़ाबिल कल भी था और आज भी है
मासूम शर्क़ी
नज़्म
रंग-ए-चमन बना है गरेबान-ए-सुब्ह-ए-ईद
दामान-ए-गुल से कम नहीं दामान-ए-सुब्ह-ए-ईद