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नज़्म
मौज-ए-रवाँ हैं मिस्रा-ए-बे-साख़्ता तिरे
बहर-ए-सुख़न में बहर-ए-मोहब्बत का जोश है
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
नज़्म
न होगा ला'ल कोई तेरी क़ीमत का बदख़्शाँ में
तू ही इक मिस्रा-ए-बरजस्ता है क़ुदरत के दीवाँ में
अमजद नजमी
नज़्म
निकहत-ओ-रंग में डूबा हुआ हर मिसरा'-ए-तर
कितनी सरसब्ज़ है शादाब है 'ग़ालिब' की ग़ज़ल
मोहम्मद अब्दुल क़ादिर अदीब
नज़्म
तख़्त को वक़्त का फ़िरऔन भी बनते देखा
ज़ेर-ए-शमशीर ये 'सरमद' ने कहा हँसते हुए