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नज़्म
कि जैसे चुप का रोज़ा रख के जी चुका था चार साल की ये उम्र-ए-मुख़्तसर
अजीब मोजज़ा हुआ कि एक दिन
सत्यपाल आनंद
नज़्म
ख़ामोशियाँ मेरे साथ सारी बहार का मोजज़ा हैं
साया जहाँ गुज़िश्ता कई दिनों से तड़प रहा है
जीलानी कामरान
नज़्म
हिजाब-ए-फ़ित्ना-परवर अब उठा लेती तो अच्छा था
ख़ुद अपने हुस्न को पर्दा बना लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मैं आहें भर नहीं सकता कि नग़्मे गा नहीं सकता
सकूँ लेकिन मिरे दिल को मयस्सर आ नहीं सकता
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
बताऊँ क्या तुझे ऐ हम-नशीं किस से मोहब्बत है
मैं जिस दुनिया में रहता हूँ वो इस दुनिया की औरत है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
अपने दिल को दोनों आलम से उठा सकता हूँ मैं
क्या समझती हो कि तुम को भी भुला सकता हूँ मैं
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
देखना जज़्ब-ए-मोहब्बत का असर आज की रात
मेरे शाने पे है उस शोख़ का सर आज की रात