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नज़्म
कभी 'मीर'-ओ-'दाग़' की शाइ'री भी मोआ'मला से हसीन थी
मगर अब जो शे'र में होता है वो मोआ'मला कोई और है
दिलावर फ़िगार
नज़्म
मामा जी के रॉकेट पर हम चाँद की सैर को जाएँगे
वहाँ के बच्चों से मिल-जुल कर दूध मलाई खाएँगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
इस मामूल से हट कर दुनिया और अमल क्या कर सकती है
हैरत ही उकता जाए तो कोई मुअम्मा हल क्या होगा
सय्यद मुबारक शाह
नज़्म
हर घड़ी बेताब हैं मामा के दर्शन के लिए
छोटे बच्चों के दिलों को ख़ूब बहलाता है चाँद