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नज़्म
''मोरचा मख़मल में देखा आदमी बादाम में''
''टूटी दरिया की कलाई ज़ुल्फ़ उलझी बाम में''
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
मीराजी
नज़्म
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
झड़ियों की मस्तियों से धूमें मचा रहे हैं
पड़ते हैं पानी हर जा जल-थल बना रहे हैं
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
देर से बैठे हो नख़्ल-ए-रास्ती की छाँव में
क्या ख़ुदा-ना-कर्दा कुछ मोच आ गई है पाँव में
जोश मलीहाबादी
नज़्म
ये पारीना फ़साने मौज-हा-ए-ग़म में खो जाएँ
मिरे दिल की तहों से तेरी सूरत धुल के बह जाए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
अपनी सोई हुई दुनिया को जगा लूँ तो चलूँ
अपने ग़म-ख़ाने में इक धूम मचा लूँ तो चलूँ