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नज़्म
मिली है जब भी उन्हें वज़ारत असेंबली हो गई मुअत्तल
हमारी मिल्लत के रहनुमा तो हलफ़ उठाने में घिस गए हैं
खालिद इरफ़ान
नज़्म
है मेरी ज़िंदगी अब रोज़-ओ-शब यक-मज्लिस-ए-ग़म-हा
अज़ा-हा मर्सिया-हा गिर्या-हा आशोब-ए-मातम-हा
जौन एलिया
नज़्म
ये हर इक गाम पे उन ख़्वाबों की मक़्तल-गाहें
जिन के परतव से चराग़ाँ हैं हज़ारों के दिमाग़