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नज़्म
लबों की मद्धम तवील सरगोशियों में साँसें उलझ गई थीं
मुँदे हुए साहिलों पे जैसे कहीं बहुत दूर
गुलज़ार
नज़्म
मैं भी अब तक जाग रहा हूँ आँखें मूँदे सोच रहा हूँ
नीचे जाना कैसा होगा बाहर कितनी सर्दी होगी
आसिम बद्र
नज़्म
और हम हैं कि दम साधे आँखें मूँदे
उन के इरादों को पसपा करने की आस में पड़े रहते हैं
अज़रा अब्बास
नज़्म
सुरूर कामरान
नज़्म
मैं सारे गुर आज़मा के जब थक गया तो सिगरेट जला लिया था
और आँखें मूँदे तिरे ख़यालों में खो गया था