aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "mufassir-e-vallail-izaa-sajaa"
उसी वक़्त दर पर फ़क़ीर एक आयासदा दी कि मिल जाए कुछ राह-ए-मौला
क्या जल-तरंग था किआदम ने ज़मीन पर सज्दा-ए-शुक्र अदा किया और
और फिर वक़्त वो आता है कि हर मौज-ए-सबाअपने दामन में लिए गर्द-ओ-ग़ुबार आती है
हमारा अना-ओ-अकेला-पनटूटने वाला है
बदन दरीदा लतीफ़े उदास बैठे हैंउभर रही है ये कैसी सदा-ए-वावैला
छोटे छोटे घोंसले नोचने पर मामूर किया हैऐसा क्यूँ है शाह-ए-वाला
और कुछ ऐसा हुआयक-ब-यक चलने लगी बाद-ए-सबा नज्द के सहराओं में
सफ़-बस्ता हों मरहूमा के सब वारिस-ओ-वाली'आज़ाद'-ओ-'नज़ीर'-ओ-'शरर'-ओ-'शिबली'-ओ-'हाली'
मेरा वजूददीवार-ए-संग-ओ-आहन है
साथी आ जिस की सूनी शामउन ज़िंदा शामों के नाम
बजानमाज़-ए-जनाज़ा हम ने अदा तो की थी
जिस कली से सेहन-ए-गुलशन था सजाउस का रस आवारा भँवरा पी गया
शब का सन्नाटाअब तो पिघल जाएगा
दूर तकहर तरफ़
एक साया सा दर आयाकोई नीला साया
जब मिरा चाक-ए-गरेबाँ न मिलादिल ने फिर जिस्म से हर रिश्ते को
आईना-ए-सदा मेंचेहरा किसी उफ़ुक़ का
ये यादेंये बातें
हर इक इल्ज़ाम सेता-'उम्र बा-‘इज़्ज़त बरी हो तुम
ग़म वो आईना कि जिस में अक्स-ए-ज़ुल्फ़-ए-अम्बरींसूरत-ए-अर्ज़-ओ-समा
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