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नज़्म
तिरी कोशिशों से लगी थी लौ उसी लौ से फैल रही थी ज़ौ
हुए सुस्त मुल्क भी गर्म-रौ तिरी देख देख के मेहनतें
सय्यद वहीदुद्दीन सलीम
नज़्म
रौशनी अफ़रंग से इस मुल्क में आई न थी
ज़ौक़-ए-ख़िदमत ने रग-ओ-पै में जगह पाई न थी
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
अहमद हमेश
नज़्म
बलराज कोमल
नज़्म
आज फिर इस मुल्क के लाखों जवाँ बेदार हैं
हुर्रियत की राह में मिटने को जो तय्यार हैं
जगन्नाथ आज़ाद
नज़्म
सर पे लाला-लाजपत राय के भी डंडे पड़े
बोस बाबू मुल्क से बाहर ही जा कर मर गए