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नज़्म
साक़ी फ़ारुक़ी
नज़्म
वो मेरी आँखों पर झुक कर कहती है ''मैं हूँ''
उस का साँस मिरे होंटों को छू कर कहता है ''मैं हूँ''
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
लाखों शक्लों के मेले में तन्हा रहना मेरा काम
भेस बदल कर देखते रहना तेज़ हवाओं का कोहराम
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
जब मेरा जी चाहे मैं जादू के खेल दिखा सकता हूँ
आँधी बन कर चल सकता हूँ बादल बन कर छा सकता हूँ
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
रोज़-ए-अज़ल से वो भी मुझ तक आने की कोशिश में है
रोज़-ए-अज़ल से मैं भी उस से मिलने की कोशिश में हूँ