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नज़्म
ये चर्ख़-ए-जब्र के दव्वार-ए-मुमकिन की है गिरवीदा
लड़ाई के लिए मैदान और लश्कर नहीं लाज़िम
जौन एलिया
नज़्म
वो जो हर दीन से मुंकिर था हर इक धर्म से दूर
फिर भी हर दीन हर इक धर्म का ग़म-ख़्वार रहा
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ये ना-उमीद हो कर भी कभी मुंकिर नहीं होते
ये किस की जुस्तुजू में पस्त होते हैं न थकते हैं
आज़िम कोहली
नज़्म
ऐ दिल-ए-काफ़िर इज्ज़ से मुनकिर आज तिरा सर ख़म क्यूँ है
तेरी हटेली शिरयानों में ये बेबस मातम क्यूँ है