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नज़्म
मिरी क़िस्मत में इस मय-ख़ाने का साग़र नहीं यारब
एवज़ में इस के मुझ को मशरब-ए-पीर-ए-मुग़ाँ दे दे
मोहम्मद सादिक़ ज़िया
नज़्म
हादी-ए-राह-ए-तरीक़त मुर्शिद-ए-रौशन-ज़मीर
आसमान-ए-अज़्म-ओ-इस्तिक़लाल के मेहर-ए-मुनीर
शातिर हकीमी
नज़्म
मैं ने बढ़ कर मुर्शिद-ए-इक़बाल से ये अर्ज़ की
आप को हम तीरा-बख़्तों की ख़बर है या नहीं
शोरिश काश्मीरी
नज़्म
अक़्ल ओ दिल ओ निगाह का मुर्शिद-ए-अव्वलीं है इश्क़
इश्क़ न हो तो शर-ओ-दीं बुतकद-ए-तसव्वुरात!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
रिंद झूम उठते थे मस्तान अदा पर जिस की
अब यहाँ कौन है उस पीर-ए-मुग़ाँ की मानिंद
जयकृष्ण चौधरी हबीब
नज़्म
यहाँ परहेज़ कैसा आओ रिंदान-ए-वतन आओ
कि जाम अपना है अपना मै-कदा पीर-ए-मुग़ाँ अपना