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नज़्म
नक़्क़ाश पर भी ज़ोर जब आ मुफ़्लिसी करे
सब रंग दम में कर दे मुसव्विर के किर्किरे
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
मुसव्विर मैं तिरा शहकार वापस करने आया हूँ
अब उन रंगीन रुख़्सारों में थोड़ी ज़र्दियाँ भर दे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
शहर में ऐसे मुसव्विर हैं जो सिक्कों के एवज़
हुस्न में लैला-ओ-अज़रा से बढ़ा देंगे तुझे
हबीब जालिब
नज़्म
है मुसव्विर की तिरे अंग अंग में गुल-कारियाँ
मो'जिज़ा लगती है तेरे हुस्न की रंगीनियाँ
जय राज सिंह झाला
नज़्म
मसीह-ए-दस्त-ओ-क़लम से निकलें तो फिर ये अल्फ़ाज़ बोलते हैं
यही मुसव्विर यही हैं बुत-गर यही हैं शायर
उबैदुल्लाह अलीम
नज़्म
बे-ख़ुदी कहती है आया ये फ़ज़ा में क्यूँ कर
किसी उस्ताद मुसव्विर का है ये जल्वा-ए-ख़्वाब
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
नक़्श-ए-महबूब मुसव्विर ने सजा रक्खा था
मुझ से पूछो तो तिपाई पे घड़ा रक्खा था
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
किस मुसव्विर ने भरे हैं रंग ऐसे ख़ुशनुमा
इस का हर इक रंग है आँखों में जैसे खुब गया