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नज़्म
ढूँडती फिरती है मुतरिब को फिर उस की आवाज़
जोशिश-ए-दर्द से मजनूँ के गरेबाँ की तरह
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
जिन्हें मुतरिबों ने चाहा कि सदाओं में पिरो लें
जिन्हें शाइ'रों ने चाहा कि ख़याल में समो लें
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जोश मलीहाबादी
नज़्म
और बुलबुल मुतरिब-ए-रंगीं नवा-ए-गुलसिताँ
जिस के दम से ज़िंदा है गोया हवा-ए-गुलसिताँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
छोड़ दे मुतरिब बस अब लिल्लाह पीछा छोड़ दे
काम का ये वक़्त है कुछ काम करने दे मुझे
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मैं कि मय-ख़ाना-ए-उल्फ़त का पुराना मय-ख़्वार
महफ़िल-ए-हुस्न का इक मुतरिब-ए-शीरीं-गुफ़्तार
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मिरे मुतरिब न दे लिल्लाह मुझ को दावत-ए-नग़्मा
कहीं साज़-ए-ग़ुलामी पर ग़ज़ल भी गाई जाती है
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
मैं हूँ 'मजाज़' आज भी ज़मज़मा-ए-संज-ओ-नग़्मा-ख़्वाँ
शाइर-ए-महफ़िल-ए-वफ़ा मुतरिब-ए-बज़्म-ए-दिलबराँ