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नज़्म
तू मुवह्हिद है कि रहमत है तिरी फ़िक्र-ओ-नज़र
जिस का पंजाब पे साया है वही तू है शजर
मोअज़्ज़म अली खां
नज़्म
हैं माजूनें मुफ़ीद ''अर्वाह'' को माजून यूँ होता
सुनो तफ़रीक़ कैसे हो भला अश्ख़ास ओ अश्या में
जौन एलिया
नज़्म
अक़्ल ओ दिल ओ निगाह का मुर्शिद-ए-अव्वलीं है इश्क़
इश्क़ न हो तो शर-ओ-दीं बुतकद-ए-तसव्वुरात!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
बदल दी नौजवान-ए-हिन्द ने तक़दीर ज़िंदाँ की
मुजाहिद की नज़र से कट गई ज़ंजीर ज़िंदाँ की
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
बड़े ही शौक़ से मुझ को पढाती हैं लिखाती हैं
बड़े ही प्यार से जो पूछता हूँ वो बताती हैं
अबुल मुजाहिद ज़ाहिद
नज़्म
जो कोशिश मुत्तहिद हो कर कहीं इक बार हो जाए
यक़ीं है मुल्क की क़िस्मत का बेड़ा पार हो जाए
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
थे हकीम-ए-शर्क़ से शैख़-ए-मुजद्दिद हम-कलाम
गोश-बर-आवाज़ सब दानिश-वरान-ए-इल्म-ओ-दीं
शोरिश काश्मीरी
नज़्म
शाना-ए-गीती पे लहराने को हैं गेसु-ए-शब
आसमाँ में मुनअक़िद होने को है बज़्म-ए-तरब
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
तेरी फ़ितरत में है 'गोबिंद' का आसार मगर
'इब्न-मरियम' का मुक़ल्लिद तिरा किरदार मगर
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
नज़्म
मुक़ल्लिद जो नहीं इस का वो पहुँचेगा न मंज़िल पर
सर-ए-हर-जादा-ए-मंज़िल है मीर-ए-कारवाँ उर्दू