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नज़्म
मैं हूँ 'मजाज़' आज भी ज़मज़मा-ए-संज-ओ-नग़्मा-ख़्वाँ
शाइर-ए-महफ़िल-ए-वफ़ा मुतरिब-ए-बज़्म-ए-दिलबराँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
गुज़र जा बन के सैल-ए-तुंद-रौ कोह ओ बयाबाँ से
गुलिस्ताँ राह में आए तो जू-ए-नग़्मा-ख़्वाँ हो जा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हुब्ब-ए-वतन का मिल कर सब एक राग गाएँ
लहजा जुदा हो गरचे मुर्ग़ान-ए-नग़्मा-ख़्वाँ का
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
जो मेरे साज़-ए-फ़ितरत में नया इक सोज़ भरना है
तू 'जौहर' और 'ज़फ़र' कैसी ज़बान-ए-नग़्मा-ख़्वाँ दे दे
मोहम्मद सादिक़ ज़िया
नज़्म
ग़ुंचा ग़ुंचा नुत्क़ पर आमादा आता है नज़र
पत्ते पत्ते की ज़बाँ को नग़्मा-ख़्वाँ पाता हूँ मैं
सय्यद वहीदुद्दीन सलीम
नज़्म
मिला है हज़रत-ए-इक़बाल से उसे आहंग
हुआ है 'मंशा' तभी ऐसा नग़्मा-ख़्वान-ए-हयात
मंशाउर्रहमान ख़ाँ मंशा
नज़्म
सहन-ए-चमन में धूम से जाएगी फिर बहार
ख़ंदा है गुल तुयूर भी है नग़्मा-ख़्वाँ कहीं
जयकृष्ण चौधरी हबीब
नज़्म
तू रही साज़-ए-मोहब्बत पर हमेशा नग़्मा-ख़्वाँ
है अमर तू आज भी ऐ बुलबुल-ए-हिन्दुस्ताँ
सय्यदा फ़रहत
नज़्म
शाख़-ए-गुल पर अब न पाओगे मुझे तुम नग़्मा-ख़्वाँ
आँधियों के पालने में गा रहा हूँ आज-कल
मासूम शर्क़ी
नज़्म
वो लब जो हर्फ़-ए-सर-ए-दार का मुग़न्नी था
जो नग़्मा-ख़्वाँ सर-ए-मक़्तल रहा उजालों का
मुस्लिम शमीम
नज़्म
वो तेरे शौक़-ए-नग़्मा-सराई को क्या हुआ
ऐ यार नग़्मा-रेज़-ओ-ग़ज़ल-ख़्वाँ कहाँ है तू