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नज़्म
मगर इस नफ़रत-ए-मानूस की तकरार से उस ने
दुरुश्त ओ ना-मुवाफ़िक़ ज़िंदगी से सुल्ह कर ली थी
अकबर हैदराबादी
नज़्म
फ़िक्र-ए-मानूस पे ज़ाहिर है हर इक ख़्वाब-ए-जमील
और हर ख़्वाब से मिलता है तुझे कितना सुकूँ
हसन नईम
नज़्म
दिलों में नफ़रत-ओ-कीना है और बुग़्ज़-ओ-इनाद
मगर लबों पे है बाबा-ए-क़ौम ज़िंदाबाद
नाज़िश प्रतापगढ़ी
नज़्म
नफ़रत ज़म हो जाती है इक सन्नाटा रह जाता है
सन्नाटा तख़्लीक़-ए-ज़मीं के बाद जो हर-सू तारी था
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
मेरे जज़ीरे पर कभी आ कर मुझे आवाज़ मत देना
बज़ाहिर आँख से दिखती चमक से मुझ को नफ़रत है