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नज़्म
नदीम जैसे निगल ली हो मैं ने नाग-फनी
ज़ इश्क़-ज़ादम ओ इशक़म कमुश्त ज़ार-ओ-दरेग़
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
मिरे वीरान दिल में रेंगती हैं मकड़ियाँ ग़म की
तमन्नाओं के काले नाग शब-भर सरसराते हैं