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नज़्म
यूँ ज़बान-ए-बर्ग से गोया है उस की ख़ामुशी
दस्त-ए-गुल-चीं की झटक मैं ने नहीं देखी कभी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
निगाह-ए-बद से देखा है किसी ने गर गुलिस्ताँ को
तो गुल-ची की हर इक साज़िश हमीं को साज़गार आई
जयकृष्ण चौधरी हबीब
नज़्म
तुम्हें ये फ़िक्र कि है कौन वो गुल-ए-ताज़ा
जो मेरी आख़िरी धड़कन का हर्फ़-ए-आख़िर है
सलाहुद्दीन नय्यर
नज़्म
ग़ुस्ल-ए-तहारत के लिए डूबा उफ़ुक़ में आफ़्ताब
अफ़रोख़्ता क़िंदील अपनी हाथ में अपने लिए
आसिफ़ रज़ा
नज़्म
न जाने मेरे दिल की ख़ुद-फ़रेबी क्यों नहीं जाती
तख़य्युल से हसीं ख़्वाबों के मंज़र गुम नहीं होते
सिद्दीक़ कलीम
नज़्म
चमन की सर-ज़मीं अपनी चमन का आसमाँ अपना
बनाएँ किस लिए इक शाख़-ए-गुल पर आशियाँ अपना