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नज़्म
हैं खिले कियारियों में नर्गिस-ओ-नसरीन-ओ-समन
हौज़ फ़व्वारे हैं बंगलों में भी पर्दे चलवन
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
'सुमन' इस दर्द को इनआ'म-ए-यज़्दानी समझती है
और इस एहसास को एहसास-ए-ला-सानी समझती है
सुमन ढींगरा दुग्गल
नज़्म
क्यूँ उठा है जिंस-ए-शायर के परखने के लिए
क्या शमीम-ए-सुम्बुल-ओ-नस्रीं है चखने के लिए
जोश मलीहाबादी
नज़्म
वो नर्गिस-ए-सियाह-ए-नीम-बाज़, मय-कदा-ब-दोश
हज़ार मस्त रातों की जवानियाँ लिए हुए
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
ज़लज़ले हों या कवाकिब सब मिरे ज़ेर-ए-नगीं
खोल सकता हूँ मैं क़ुफ़्ल-ए-आसमाँ बाब-ए-ज़मीं
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
नर्गिस-ए-मख़मूर है लज़्ज़त-ए-कश-ए-ख़्वाब-ए-निशात
फूट निकला है गुल-ए-नसरीं से सैलाब-ए-नशात
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मेरी परवीन-ए-तख़य्युल, मिरी नसरीन-ए-निगाह
मैं ने तक़्दीस के फूलों से सजाया है तुझे
मुस्तफ़ा ज़ैदी
नज़्म
नश्शा-ए-नर्गिस-ए-ख़ूबान-ए-वतन तुम से है
इफ़्फ़त-ए-माह-ए-जबीनान-ए-वतन तुम से है