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नज़्म
ज़िंदगी बहती रही आब-ए-रवाँ की मानिंद
कभी हल्की सी कभी ख़्वाब-ए-गिराँ की मानिंद
जयकृष्ण चौधरी हबीब
नज़्म
लो ईद आई लो दो पुलिए मैदान में भर बाज़ार लगा
हर चाहत का सामान हुआ हर ने'मत का अम्बार लगा