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नज़्म
वो साहिरा कि लश्कर-ए-जमाल-ए-बा-कमाल उस के साथ था
वो साहिरा कि क़त्ल-ए-आम के तमाम असलहों से लैस थी
ख़ालिद मुबश्शिर
नज़्म
शोरिश-ए-बातिल शोर-ए-सलासिल कल भी था और आज भी है
मर्द-ए-मुजाहिद मद्द-ए-मुक़ाबिल कल भी था और आज भी है
मासूम शर्क़ी
नज़्म
बदल जाए अभी 'इन'आम' नज़्म-ए-शोरिश-ए-बातिल
ज़रा हम इत्तिबा'-ए-मशरब-ए-रूहानियाँ कर लें
इनाम थानवी
नज़्म
गर्दन-ए-हक़ पर ख़राश-ए-तेग़-ए-बातिल ता-ब-कै?
अहल-ए-दिल के वास्ते तौक़-ओ-सलासिल ता-ब-कै?
जोश मलीहाबादी
नज़्म
ज़र्द परचम उड़ाता हुआ लश्कर-ए-बे-अमाँ गुल-ज़मीनों को पामाल करता रहा
और हवा चुप रही