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नज़्म
बल्ली-मारां के मोहल्ले की वो पेचीदा दलीलों की सी गलियाँ
सामने टाल की नुक्कड़ पे बटेरों के क़सीदे
गुलज़ार
नज़्म
यहाँ अर्ज-ए-दुआ मेहर-ओ-वफ़ा कुछ भी नहीं है
कई लाशें भटकती रहती हैं बे-रूह नुक्कड़ पर
त्रिपुरारि
नज़्म
'मीर'-ओ-'ग़ालिब' की दिल्ली कभी ऐसी तो न थी
हर गली हर नुक्कड़ पर साँप कुंडली मारे बैठे हैं यहाँ
परवेज़ शहरयार
नज़्म
दामन-ए-रंगीं में इक दोशीज़ा-ए-नाकत-ख़ुदा
चुन रही है नन्ही नन्ही सुर्ख़ कलियाँ ख़ुशनुमा
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
ख़िज़ाँ का हात शाख़-ए-तर से तोड़ कर चला गया
मैं एक सम्त फ़लसफ़े के अन-गिनत निकात की पनाह हूँ
सहर अंसारी
नज़्म
अम्माँ ने इमाम-ए-ज़ामिन मेरे बाज़ू में बाँधा
और जल्दी में मेरे बाज़ू गली के नुक्कड़ पर ही छूट गए
अतीक़ुल्लाह
नज़्म
सुन ऐ फ़रेफ़्ता-ए-क़िस्सा-हा-ए-हिज्र-ओ-विसाल
अमीक़-तर हैं समुंदर से ज़िंदगी के निकात