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नज़्म
ये नुक्ता सरगुज़िश्त-ए-मिल्लत-ए-बैज़ा से है पैदा
कि अक़्वाम-ए-ज़मीन-ए-एशिया का पासबाँ तू है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मिरे तख़्ईल के बाज़ू भी उस को छू नहीं सकते
मुझे हैरान कर देती हैं नुक्ता-दानियाँ उस की
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
जो मिसाल-ए-शम्अ रौशन महफ़िल-ए-क़ुदरत में है
आसमाँ इक नुक़्ता जिस की वुसअत-ए-फ़ितरत में है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हाए अब क्या हो गई हिन्दोस्ताँ की सर-ज़मीं
आह ऐ नज़्ज़ारा-आमोज़-ए-निगाह-ए-नुक्ता-बीं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तारिक़ क़मर
नज़्म
सिमट कर किस लिए नुक़्ता नहीं बनती ज़मीं कह दो
ये फैला आसमाँ उस वक़्त क्यूँ दिल को लुभाता था
मीराजी
नज़्म
नुक्ता-चीं ने ये कहा उठ के कि हाँ ऐ फ़ारूक़
हुक्म दे हम को कि अब हम उसे मानेंगे ज़रूर
शिबली नोमानी
नज़्म
बुल-कलाम-'आज़ाद' से 'ग़ालिब' थे मसरूफ़-ए-सुख़न
'मीर' ओ 'मोमिन' दौर-ए-हाज़िर की ग़ज़ल पे नुक्ता-चीं
शोरिश काश्मीरी
नज़्म
मुझे शिकवा नहीं उन पाक बातिन नुक्ता-चीनों से
लब-ए-मोजिज़-नुमा ने जिन के मुझ पर आग बरसाई