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नज़्म
यौम-ए-आज़ादी ने यूँ छिड़का फ़ज़ाओं में गुलाल
गुल्सिताँ से भीनी भीनी ख़ुशबुएँ आने लगीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
वो आदमी कि सभी रोए जिन की मय्यत पर
मैं उस को ज़ेर-ए-कफ़न ख़ंदा-ज़न भी देखता हूँ
अहमद नदीम क़ासमी
नज़्म
बुनियाद-ए-ग़ुरूर-ओ-किब्र-ओ-अना को ठोकर से ढा देती है
तदबीर की आख़िर नाकामी तक़दीर को मनवा देती है
सरीर काबिरी
नज़्म
तेरे क़ब्ज़े में है गर्दूं तिरी ठोकर में ज़मीं
हाँ उठा जल्द उठा पा-ए-मुक़द्दर से जबीं
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
बरहना तेग़ों ने सारे मंज़र बदल दिए हैं
फ़सील-ए-क़स्र-ए-अना के नीचे वफ़ा की लाशें पड़ी हुई हैं
तारिक़ क़मर
नज़्म
है दाख़िल फ़ितरत-ए-मुनइ'म में नादारों को तड़पाना
सर-ए-पा-ए-हिक़ारत से हर इक बेकस को ठुकराना
टीका राम सुख़न
नज़्म
अकेले फूल चुन लें बाग़ में तो ख़ैर चुन भी लें
मगर तन्हा प-ए-गुल-गश्त मैं जाऊँ न वो जाएँ
अली मंज़ूर हैदराबादी
नज़्म
सज्दा-रेज़ी के लिए इस रहगुज़र में ऐ जबीं
नक़्श-ए-पा-ए-दोस्त की तक़लीद होनी चाहिए
मयकश अकबराबादी
नज़्म
सज्दा-रेज़ी के लिए इस रहगुज़र में ऐ जबीं
नक़्श-ए-पा-ए-दोस्त की तक़लीद होनी चाहिए
मैकश हैदराबादी
नज़्म
ख़म जबीं होती है उस की नक़्श-ए-पा-ए-दोस्त पर
और झुक जाते हैं उस के पाँव पर दोनों जहाँ