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नज़्म
निगाह-ए-अहल-ए-दिल में फ़ाश करती हैं मुझे जैसे
मिरी मजबूरियाँ जिन की प्यास रंज-ए-महरूमी
क़य्यूम नज़र
नज़्म
हम पे रहती है निगाह-ए-शफ़क़त-ए-अहल-ए-नज़र
महफ़िल-ए-शेर-ओ-अदब में जाने-पहचाने हैं हम
तालिब चकवाली
नज़्म
निगाह को थी मगर मीर-ए-कारवाँ की तलाश
नज़र जो उट्ठी तो देखा कि एक मर्द-ए-फ़क़ीर
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
जो निगाह-ए-अहल-ए-सर्वत में हक़ीर-ओ-पाएमाल
ज़िंदगानी वक़्फ़ थी जिस की बराए अहल-ए-ज़र