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नज़्म
वो इल्म में अफ़लातून सुने वो शेर में तुलसीदास हुए
वो तीस बरस के होते हैं वो बी-ए एम-ए पास हुए
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
सेहन-ए-चमन पर भौउँरों के बादल एक ही पल को छाएँगे
फिर न वो जा कर लौट सकेंगे फिर न वो जा कर आएँगे
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
उठ जा नज़र से मेरी हाँ ऐ हिजाब-ए-हस्ती
हुस्न-ए-अज़ल निहाँ है ज़ेर-ए-नक़ाब-ए-हस्ती
ग़ुलाम भीक नैरंग
नज़्म
अब मैं समझा कि है क्या राज़-ए-ब-दामान-ए-हिजाब
वाक़ई तुम को नदामत है जो ख़ामोश हो तुम
शकील बदायूनी
नज़्म
हिजाब-ए-फ़ित्ना-परवर अब उठा लेती तो अच्छा था
ख़ुद अपने हुस्न को पर्दा बना लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
है दिल-ए-सादा तिरा वारफ़्ता-ए-हुस्न-ए-हिजाब
ज़िश्त-रूई का कहीं पर्दा न हो रंगीं नक़ाब