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नज़्म
पल दो पल में कुछ कह पाया इतनी ही स'आदत काफ़ी है
पल दो पल तुम ने मुझ को सुना इतनी ही ‘इनायत काफ़ी है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जिसे ये भी न हो मालूम वो है भी तो क्यूँ-कर है
कोई हालत दिल-ए-पामाल में रखता भी तो कैसे